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प्राइमेट्स के पीछे

आवश्यक सूचना एवं भूमिका – यह लेख किसी भी समुदाय या जगह को गलत तरह से पेश करने का प्रयास नहीं है | यह लेख एक चिंतन है जो लंबे समय तक एक जगह पे रहकर किए गए अवलोकन से उपजा है | और चिंता, उम्मीद, और जिज्ञासा के भाव से उस जगह को याद करने का तरीका है | इस लेख में जिस प्रकार वैज्ञानिक शोध होता है और उसे लिखा जाता है, उसकी छवि आपको दिखेगी | यह लेख अलग अलग विचारकों से उनके विचार लेकर और पढ़ के और कभी उनसे मिलकर बात करके, और समझ के लिखा गया है क्योंकि ये अंत में दुनिया की असलियत को देखने का एक और तरीका मात्र है | जैसे और अन्य चिंतन और उनकी अपनी टीकाएँ और उन पर की गयी टिप्पणियाँ है | इसलिए, ये लेख किसी लंबी वार्तालाप का एक हिस्सा मात्र है, और इसे आप सभी से साझा करने का उद्देश्य इस संवाद को आगे बढ़ाना है, उसमें जोड़ना है | कृपया इसे इसी प्रकार स्वीकार करें |

मंडल घाटी में हर नया दिन अपनी नई कहानी बुनता है, और कोई दो दिन एक समान नहीं गुजरते | मंडल घाटी किसी भी मध्य हिमालयी घाटी की तरह है , जो अपने बीच पनपते छोटे छोटे गाँवों से समृद्ध है, इसकी हवा में रीति-रिवाजों, परंपराओं, और संस्कृति की एक सूफी महक घुली है | मंडल घाटी के भूदृश्य की संरचना में मानव कृषि गतिविधि को दर्शाते खेत, क्रमशः आसपास फैले अरण्य से आके मिल जाते है | यह घाटी केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य का दक्षिणी प्रवेश द्वार है (श्रीवास्तव और अन्य, 2020) | हर सुबह, इस घाटी के निवासी अपने दैनिक कार्यों में लग जाते हैं  | एक पटकथा की लिपि का जैसे पालन किया जाता हो  | गौशाला की सफाई, गायों की देखभाल, लकड़ी, सूखी घास और चारा इकट्ठा करने के लिए जंगल में जाना, गांव के बाजार, या निकटतम शहर गोपेश्वर हो आना, या खेतों में काम करना। देखा जाए तो दैनिक जीवन में करने को सीमित ही गतिविधियां और संभावनाएं होती है मंडल घाटी में | और फिर भी, हर दिन दूसरे से अलग घटित होता है | ग्राम वासियों की तरह ही हम भी एक पटकथा लिपि का अवचेतन रूप से पालन करते| हम, इस लेख के लेखक, मंडल घाटी में हिमालयी लंगूर परियोजना (एच. एल. पी.) [1] के अंतर्गत शोध कर रहे शोधकर्ताओं[2] का प्रतिनिधित्व करते हैं | एच. एल. पी. एक शोध समूह है जो आज जंगली हिमालयन लंगूर के व्यवहार का अध्ययन करता है और इस भूदृश्य के संरक्षण के हित में कार्यरत है (नौटियाल और अन्य, 2020) | वीरेंद्र उत्सुक थे हिमालयी लंगूरों के यात्रा मार्गों को समझने के लिए, और अपने शोध में यह जानना चाहते थे कि किस प्रकार लंगूरों के ये यात्रा मार्ग, और उनका भ्रमण और गतिशीलता, मनुष्य के साथ उनके सम्बन्ध को आकार देती है | आर्जव, एक एथनोग्राफी (एक जातीय अध्ययन)[3] के माध्यम से ये जांच रहे थे कि मानव और प्रकृति के बीच पनपे संघर्ष[4] किस प्रकार सामुदायिक रूप से अधिकृत वन क्षेत्र में पर्यावरण अनुसंधान प्रथाओं को प्रभावित करते है ।

हमारी पहचान, स्थानीय समुदाय द्वारा अपनाई गई और चरित्रित की गई पहचान से बहुत अलग और पृथक भले ही हो, परन्तु मंडल घाटी में हमारा जीवन – उस ग्राम के समुदाय से, वहां बसने वाले, इंसानी अस्तित्व से परे, एक जीवंत प्राकृतिक संसार[5] से, और वहां के भूदृश्य से बन चुके संबंधों में उदित और घटित होता था | इस निबंध द्वारा संक्षिप्त में मंडल घाटी में बाहरी/शोधकर्ताओं के रूप में, स्थानीय ग्राम निवासियों के साथ हमारे संबंधों की भावपूर्ण मुद्राओं पर मनन करते हैं [6] | इस निबंध का विषय उन चर्चाओं और चिंतन से वार्तालाप करना है, जो हिमालय जैसे जलवायु परिवर्तन से प्रभावित सीमांत भूदृश्य में, और जहां सामाजिक और पारिस्थितिकी तंत्र [7] और ताकतें परस्पर क्रिया करती है, वहां की निर्णय प्रणालियों की संरचनाओं पर विचार करता है (खत्री और अन्य , 2024) | हम हिमालय के परिप्रेक्ष्य में, विज्ञान और सामाजिक संरचनाओं के बीच पारस्परिक क्रियाओं की अनिश्चितताओं और भावपूर्ण प्रकृति को उजागर करते हैं। इस लेख के द्वारा हम आपको फील्डवर्क की विधि पर, और वैज्ञानिक अनुसंधान को संचालित करने हेतु एक ग्राम समुदाय में अपना स्थान बनाने की क्रिया पर, विचार करने के लिए आमंत्रित करते हैं  (बाविसकर, 1995; जोशी और अन्य , 2024) ।

लंबे समय से अध्ययन का विषय रहे एक हिमालयी लंगूर (सेमनोपीथेकस शीषटेसियस, Semnopithecus schistaceus) दल का पीछा करना हमारे फील्डवर्क का मुख्य हिस्सा था [8] | आदर्श परिस्थितियों में , हम लंगूर दल का सुबह से पीछा करते हुए उन्हें उस स्थान से ट्रैक करना शुरू करते, जहाँ वे पिछली रात पेड़ों में सोने के लिए रुक गए थे, और शाम तक उनके साथ चलते, जब वे सोने के लिए एक नए वृक्षों के समूह में पहुंचते। लेकिन बिना व्यवधान के पूरा दिन फील्डवर्क होजाना, ऐसे दिन दुर्लभ थे | हमारे शोध कार्य का ध्येय प्राप्त होगा, उसका निर्धारण तो रिसर्चर और, लंगूरों, स्थानीय ग्राम समुदाय, और व्यापक प्रकृति जिसने सब को घेरा है , के बीच के परस्पर बदलते संबंधों पर आधारित था । लंगूरों का यह दल कृषि योग्य खेत, छोटे सड़क किनारे बने होटल, छोटे गांव, फलों के छोटे बागान, और इस सब को घेरे जंगल के एक विविध मिश्रित भूदृश्य में रहता है। हर शाम हमारे शोध-दल का कोई एक सदस्य लंगूर-दल के अंतिम देखे गए स्थान की सूचना हम सभी को पहुंचा देता था | इस स्थान का पता होना हमें यह अनुमान लगाने में मदद करता था कि अगले दिन लंगूर किस दिशा में और किन क्षेत्रों में जा सकते हैं |

हम आमतौर पर भोर होने से पहले उठ जाते । उठते ही सबसे पहले बाहर निकल मौसम का आकलन करते | सर्दियों में हम पौ फटने से पहले ही, सुबह की उस करारी ठंड में अपना फील्ड वर्क प्रारंभ कर देते | सर्दियों में सुबह की धूप, घाटी में बसे गाँव और तलहटी में बिछे खेतों तक  नौ बजते-बजते पहुंचती | गर्मियों में भी हम जल्दी उठते, इससे पहले कि सुबह की चिलचिलाती गर्म धूप पूर्वी चोटियों के ऊपर से होकर घाटी में उतर आए | मॉनसून माह की अपनी चुनौतियां होती, और हम अपना फील्डवर्क  कभी देरी से भी शुरू करते, क्योंकि सुबह सुबह तो रात के अंधेरे में शुरू हुई बारिश ही नहीं थमती थी | यह मौसम अत्यधिक निराशा और अनिश्चितता लाता था, क्योंकि जंगल में फिसलन भरी चट्टानों और रास्तों पर लंगूरों का पीछा करना कठिन हो जाता था। भले ही मौसम साथ दे, फिर भी शोध का हो जाना, डाटा का संकलन हो जाना, और आज के फील्डवर्क को कौन संभावी मतभेद/संघर्ष बाधित कर सकते हैं, यह सब इस पर निर्भर करता था कि लंगूर अपने सोने के स्थान से निकलने के बाद किस दिशा में यात्रा करेंगे । हर दिन के कार्यों में अनिश्चितता होती, और हमारे रोज के निर्णय इस पर केंद्रित होते थे कि इस घाटी में हमारी उपस्थिति को कैसे कम से कम प्रदर्शित किया जाए और मंडल के निवासियों से हो रहे संघर्ष और मतभेदों को टाला जाए ।

चित्र 1 - मंडल घाटी, आप पश्चिम की ओर देख रहे है | मॉनसून माह के शुरुआती दिनों का एक उजला और चमकीला दिन | केंद्र में बाएं की ओर सांसों गाँव देखा जा सकता है | कृषि संबंधित गतिविधि घट की तलहटी और ढलान पे होती है | कृषि क्रमशः नेपथ्य में दिख रहे घने वन से मिल जाती है |

मंडल घाटी में कृषि संबंधित गतिविधि इस घाटी की तलहटी पर और ढलान पर बसे सीढ़ी नुमा खेतों में होती है | कृषि गतिविधि उत्तरोत्तर आसपास के जंगल में जा मिलती है | घने वन के पास स्थित होने के कारण, सभी दिशाओं से जंगली जानवर मानव द्वारा रूपांतरित इस भूदृश्य से होकर गुजरते हैं |

 

मंडल घाटी उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। उत्तराखंड राज्य में हिमालय की कुछ सबसे प्रभावशाली पर्वत चोटियां, और नदी द्वारा तराशी गई बेमिसाल घाटियां, और प्राचीन व्यापार मार्ग और संस्कृतियों का घर है, और अनेकों रहस्यमय हिंदू मंदिर, प्रत्येक मंदिर के पौराणिक महत्व से सम्बन्धित लोककथाओं का एक पारंपरिक खजाना है उत्तराखंड राज्य में | इन मंदिरों का दुर्गम और सुदूर क्षेत्रों में बसा होना इनके रहस्यमयी आकर्षण को प्रबल करता है | इन्हीं मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध चार हिंदू मंदिरों का एक समूह है, जिसे चार धाम या छोटा चार धाम नाम दिया जाता है | 1970 के दशक से ही, और फिर सन् 2000 में एक पृथक राज्य के बन जाने के बाद और भी, उत्तराखंड राज्य ने एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने का एक लक्ष्य रखा है | इसका प्रमुख उद्देश्य पर्यटन को राजस्व और रोजगार का स्रोत बनाना है। इस प्रकार, धर्म और पर्यटन का एक कुशल संयोजन करके, उत्तराखंड ने चार धाम को एक उत्पाद के रूप में प्रस्तुत किया है जो हर साल लाखों हिंदू तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है (ऑकलैंड, 2007)। इस योजना ने विकास के नाम पर सरकारी और निजी निवेशकों को भी आकर्षित किया है। चार धाम यात्रा मार्ग पूरी तरह से गढ़वाल में स्थित है और मंडल घाटी से होकर गुजरता है। तीर्थयात्रियों का ये आवागमन, जिसमें हर साल चार धाम यात्रा के महीनों में भारी बढ़ोत्तरी होती है, मंडल घाटी के निवासियों के लिए कुछ मुनाफे और समृद्धि की उम्मीद लेकर आता है।

मंडल घाटी की समृद्ध जैव विविधता, यहां की सांस्कृतिक धरोहर, विकासशील आकांक्षाएं, और धीरे-धीरे फीकी पड़ती खेतीहर पहचान यहां की सामाजिक और पर्यावरण की परस्पर संबंधित परिस्थिति को आकार देती है | इस घाटी में बसा मंडल गांव वह स्थान है जहाँ 1973 में चिपको आंदोलन का जन्म हुआ था (गुहा, 1989)। यह वो समय था जब प्राकृतिक चेतना को लेकर जागरूकता ऊंचाई पर थी | यह प्राकृतिक चेतना का उदघोष प्रकृति और संस्कृति के परस्पर रिश्तों पर आधारित था, वही रिश्ते जिन्होंने एक पहाड़ी (पहाड़ों की) पहचान को स्थापित किया | आज चार धाम में से दो धाम – बद्रीनाथ और केदारनाथ – को जोड़ने वाला राजकीय राजमार्ग मंडल घाटी से होकर गुजरता है | हिमालय में पर्यटन और विकास को बढ़ावा देने की राष्ट्रीय और राज्य स्तर की नीतियों के फलीभूत मंडल घाटी में भी विकास कार्यों ने गति पकड़ी है | भारत में दक्षिणपंथी केंद्र सरकार द्वारा हाल में चार धाम यात्रा को उत्पाद के रूप  में प्रस्तुत करने के प्रयासों ने भी मंडल घाटी क्षेत्र में विकासात्मक आकांक्षाओं को प्रेरित किया है | मंडल से होकर गुजारने वाली इस एकमात्र सड़क से गुजरने वाले यात्रियों का ट्रैफिक हर साल बढ़ा ही है | इन बढ़ते हुए यात्रियों से होने वाली कुछ अधिक कमाई के चलते सड़क के किनारे के खेत की जमीन पर अब होटल, रेस्तरां, या दुकानें खड़ी कर दी गई हैं | इस प्रकार का चलन पूरे हिमालय क्षेत्र में देखा जा सकता है, जहां की पहाड़ी पहचान देश या राज्य स्तर पर हो रहे सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों और नीतियों के प्रभाव स्वरूप सतत नई परिभाषा लेती  रही है |

अकादमिक लेखकों जैसे अग्रवाल (2005), गोविंदराजन (2018), और माथुर (2021) ने इस बदलती और लचीली पहाड़ी पहचान की अपने लेखन में गहराई से चर्चा की है। हालांकि मंडल क्षेत्र के ग्राम वासियों की मुख्य रुचि अब पर्यटकों की सेवा करने में बदल रही है, तब भी इस घाटी ने अपनी ऐतिहासिक, प्राकृतिक, और सांस्कृतिक पहचान को नहीं खोया है। वास्तविकता में, पहाड़ी पहचान को बनाते इन तीन स्तंभ ने मंडल घाटी जैसी और अन्य घाटियों को उनकी पर्यटन अपील प्राप्त करने में बड़ा योगदान निभाया है | और दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि-आधारित आर्थिक ढांचे पे अत्यधिक दबाव पड़ा है, और साथ ही साथ विचारों, जीवनशैली, और पूंजी के प्रवाह ने नई आकांक्षाओं को जन्म दिया है, जिन्होंने कृषि-आधारित जीवनयापन की महत्ता को कम किया है | जो सांस्कृतिक और सामाजिक ताना – बाना  कृषि आधारित इस जीवनशैली के चक्के पे बुना गया था वो अब कहीं कहीं से दरकने लगा है | समूचे मंडल क्षेत्र में फसल के उत्पादन में गिरावट आई है, कैश – आधारित बाजार के विकास के साथ ही स्थानीय निवासियों के लिए जीवन यापन करना कठिन होता गया है । इस प्रकार, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए सेवा का प्रबंध करना तेजी से एक वैकल्पिक और जीवनयापन का प्रभुत्वपूर्ण साधन बन गया है। बहरहाल, पर्यटन से हो सकने वाली यह आय, किसी प्रतिष्ठान की राज्य मार्ग से निकटता पर निर्भर करती है, इस प्रकार समुदाय के परिवारों में आय के आधार पर वर्गीकरण और मतभेद की भावना पैदा करती है |

चार धाम तीर्थयात्रा में एक पड़ाव होने के अलावा, इस क्षेत्र में पर्यावरण और वन्यजीव शोधकर्ताओं, प्रकृतिवादि (बर्वे और अन्य, 2016; दीक्षित, जोशी, और बर्वे , 2016; इश्तियाक और बर्वे , 2018; नौटियाल और अन्य , 2020), और बैकपैकर्स (गैरोला, 2021) की भी गहरी रुचि रही है | ये सभी समूह स्थानीय लोगों के लिए फील्ड गाइड या शोध सहायक जैसे वैकल्पिक रोजगार के अवसर खोलते हैं | एच. एल. पी. से जुड़े हम शोधकर्ता एक ऐसा समूह थे जो पूरे वर्ष मंडल में रहते, जबकि पर्यटक और तीर्थयात्री यात्रा के महीने में केवल कुछ दिनों के लिए ही मंडल में रुकते । फिर जब चार धाम  मंदिरों के कपाट नवंबर से अप्रैल तक शीतकालीन महीनों में बंद हो जाते, तो मुख्यतः तीर्थयात्रियों के रूप में आय का एक स्रोत भी सूख जाता । सर्दियों के महीनों में केवल कुछ ही पर्यटक आमतौर पर निचले मैदानी इलाकों से बर्फ देखने और स्नोफॉल का अनुभव करने मंडल तक की यात्रा तय करते थे। दूसरी ओर, एक शोध समूह के रूप में मंडल में लगातार रहते हुए भी हम कुछ ही परिवारों को निरंतर रोजगार और व्यापार प्रदान कर पाते थे ।ऐसे में हम शोधकर्ताओं और स्थानीय निवासियों के बीच एक अनोखा, और कभी कभी असहज करने वाला, एक ऐसा रिश्ता बन जाता जिसमें एक पक्ष दूसरे पर परस्पर सत्ता और अधिकार जताते | पर्यटन पर निर्भर होती अर्थव्यवस्था से उपजे प्रभाव स्थानीय समुदाय के साथ हमारे संबंधों में समाहित हो गए, और इन संबंधों ने हमारे शोध करने की सीमाओं को प्रभावित और उनको निर्धारित भी किया | वैसे भी देखें, तो मंडल एक सक्रिय स्थल है फ्रिक्शन के लिए ( त्सिंग, 2005) । हम इन फ्रिक्शंस[9] का अनुभव तो करते ही थे, और हम इनका कारण भी थे क्योंकि हमने चयनात्मक रोजगार उत्पन्न किया था । यह फ्रिक्शंस तब पैदा हुए जब हम शोधकर्ता, जो कि इस जगह या इस समुदाय से नहीं थे , ने इस घाटी में अपना स्थान, अपनी जगह बनानी आरम्भ की और अपने दैनिक आचरण, शोध प्रणाली, और अपनी गतिविधियों और भ्रमण के माध्यम से, यहां के ग्राम निवासियों और मानव से हटके जो जीवंत विस्तार है उससे एकसार हुए |

मंडल घाटी में मॉनसून के आखिरी के दिनों की जीवंत हरियाली | घाटी की तलहटी में खरीफ फसल लह-लहा रही है, मुख्यतः रागी (फिंगर मिलेट) और धान (चावल) | दोनों तरफ से जंगल लोटता हुआ तलहटी तक पसर आया है | जिस हिमालयी लंगूर दल पर हम शोध कर रहे हैं उस दल के दो लंगूर ऊंचाई पर चट्टान के किनारे बैठ अपने शरीर के बालों को सुखा रहें हैं | फोटो – आशु तोमर/हिमालयन लंगूर प्रोजेक्ट

कभी कभी, जब हम उस जगह की ओर जा रहे होते थे जहां लंगूरों को पिछली बार देखा गया था, तो रास्ते  में कुछ नजरें हमारी तरफ मुड़ती, कुछ गर्मजोशी से भरे नमस्कार और अभिवादन होते, तो कुछ और जिज्ञासु और शरारत से भरे लोग टिप्पणी करते हुए पूछते “और आज लंगूर देखने के लिए तैयार हैं?” | इससे पहले कि लंगूर अपना दैनिक भ्रमण शुरू करें, हम उस स्थान तक पहुंचने की कोशिश करते जहां वे पिछली रात सोए थे | इसका मतलब यह नहीं था कि अब उनके मिल जाने पे दिन भर शोध कार्य आसानी से हो पायेगा । जिस लंगूर दल का हम अपने शोध के लिए पीछा करते थे, वह जंगल के एक हिस्से से दूसरे हिस्से की ओर बढ़ते हुए अक्सर खेतों में से होकर गुजरता था । यह बड़ा लंगूर दल खेतों से गुजरते हुए खेत में हो रही फसल को रौंदता हुआ और खाता हुआ निकल जाता | ग्राम-वासी अक्सर शोधकर्ताओं को लंगूरों को खेतों में लाने के लिए दोषी ठहराते । एचएलपी के अब तक के शोध के दौरान देखा गया है कि मंडल घाटी में ऐसी घटनाओं में इजाफा हुआ है | ऐसे संघर्षों ने शोधकर्ताओं और ग्राम वासियों  के बीच संबंधों को तनावपूर्ण और खट्टा कर दिया है । क्रमशः कृषि क्षेत्र और गांव के पास के क्षेत्र अब “नो-रिसर्च” जोन बन गए है, या कहें तो ऐसे क्षेत्र जहां लंगूरों पर शोध कार्य मुमकिन नहीं है | इस प्रकार, किसी भी दिन लंगूर दल कहाँ को जाएगा यह उस दिन के शोध की सफलता को निर्धारित करता था । यदि लंगूर कृषि क्षेत्रों में चले जाते या गांव से होकर गुजरते, तो कुछ घंटों या और अधिक समय तक किसी प्रकार का डेटा एकत्रित[10] नहीं किया जा सकता था। उन क्षणों में, हम इंतजार करते, आशा करते हुए कि लंगूर “रिसर्चेबल जोन” में चले जाएं। फ्रिक्शन और संघर्ष हमारे शोध को आकार दे रहे थे, और इसके परिणामस्वरूप, जो वैज्ञानिक जानकारी अंततः उत्पादित [11] होने वाली थी , उसे भी प्रभावित कर रहे थे।

ग्राम-वासियों और शोधकर्ताओं के समूह के बीच संबंध नाजुक हो गए थे । ग्राम समुदाय से जो तीन फील्ड सहायक हमारे साथ काम करते थे, उन्हें छोड़कर अधिकांश ग्राम निवासी हमारे शोध परियोजना के औचित्य और तर्काधार में कम रुचि रखते थे। कभी-कभी ग्राम-वासी  संदेहपूर्वक हमारे काम के बारे में पूछते थे, जब वह हमें दूरबीन और कॉपी-पेन हाथ में लिए, सड़क किनारे खड़े हो जंगल से खेत में बढ़ते हुए लंगूर दल को देखते हुए या उसका अवलोकन करते पाते | जब हम लंगूरों का पीछा करते तो अधिकांश लोग हमें कुछ हद तक “अजनबी” समझते हुए आश्चर्य में देखते थे। इस प्रकार की भावना की हमारा इस क्षेत्र में स्वागत नहीं है, समय के साथ आती जाती रहती थी । इस निबंध में, हमने इन भावनाओं के उत्पन्न होने के कारणों पर विचार करने की कोशिश की, और यह पाया कि इन्हें समझने के लिए ऐतिहासिक अधीनीकरण , बाजार से प्रेरित नीतियों, और सरकारी शासन के प्रभावों का परीक्षण करना आवश्यक है, जिन्होंने धीरे-धीरे यहां के समुदाय को यहां के जंगल से दूर किया है |

प्राइमेट्स पर शोध करते हुए और मंडल के समुदाय के साथ संवाद करते हुए , हम स्थानीय लोगों और घाटी में मौजूद मानव-से-हटकर प्राकृतिक जीवन के साथ एक रिश्तेदारी स्थापित करने में अभ्यस्त रहे। हमारे लिए मंडल घाटी इन रिश्तों और संबंधों में प्रकट होती है और यह प्रदर्शित करती है कि ये रिश्ते और संबंध प्रतिदिन अनगिनत तरीकों से एक-दूसरे को छूकर गुजरते हैं । यहीं, इस घाटी में, वैज्ञानिक अनुसंधान करने के ध्येय से , हमने अपना स्थान बनाने की कोशिश की | और चूंकि मंडल घाटी में कभी भी दो दिन एक जैसे नहीं होते , तो हमारे वैज्ञानिक अनुसंधान का ध्येय भी रोज के इस बदलाव के भंवर में बदलता ।


Notes

[1]  2014 में स्थापित हुए हिमालयन लंगूर प्रॉजेक्ट के अंतर्गत शोधकर्ताओं का एक समूह मंडल घाटी में दो लंगूर दलों का अध्ययन करता है। एच. एल. पी का शोध कार्य हिमालयन लंगूरों के व्यवहार और पारिस्थितिकी, आंत-माइक्रोबायोम, अपने क्षेत्र में यात्रा और उसका संज्ञान, और उनके ध्वनि संकेतों, जैसे विषयों पर मुख्य रूप से केंद्रित है, और शोध के माध्यम से समग्र संरक्षण प्रथाओं में योगदान का प्रयास करता है। आप परियोजना की वेबसाइट https://www.himalayanlangur.com/ और यूट्यूब चैनल – youtube.com/@thehimalayanlangur पर और जानकारी ले सकते हैं।

[2] यह पूरा लेख शोधकर्ता की उस पहचान और उस एक रिश्ते के नजरिए से लिखा गया है, और इसमें अपने निजी रिश्तों के संबंध में हम बात नहीं कर पाए हैं |

[3] यह लेख एथनोग्राफी और फील्ड-वर्क की विद्या को इस्तेमाल करके लिखा गया है | एंथ्रोपोलॉजी विषय (जिसे मानवशास्त्र भी कहते है) में एथनोग्राफी एक केंद्रीय कौशल है | इन्हीं सब के संदर्भ में फील्डवर्क का मतलब हुआ कि एथनोग्राफी करने या कोई भी शोध करने, जैसे वन्यजीव संबंधित शोध करने, किसी एक समुदाय या एक गुट (प्रायः शहरी बसावट से दूर, पर शहर भी), या किसी जगह/स्थान पे जाना, और फिर वहां शोध कार्य के दौरान खुद रहकर, और अक्सर वहां का “स्थानीय जीवन जीकर”, अवलोकन करना |

[4] लेख में जब मानव और प्रकृति के बीच पनपे संघर्ष की बात होगी तो उसका मतलब कॉन्फ्लिक्ट से होगा | ह्यूमन – वाइल्डलाइफ इंटरेक्शन इंसान और जंगली जीवन किस प्रकार साक्षात तौर पे या किन्हीं और तरीकों से, एक दूसरे पे जो प्रभाव छोड़ रहे हैं , उसको दर्शाता है और मोटे तौर पे परिभाषित करता है | ऐसे इंटरेक्शन जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) और विश्व के अत्यधिक गति से गर्म होने (ग्लोबल वार्मिंग) के चलते अब और संजीदा हो गए हैं , और कई जगहों पे परेशानी का सबब बन गए हैं | हिमालय के परिप्रेक्ष्य में जंगली जानवर खेतों में घुसके फसल को क्षति पहुंचा रहे हैं, गाँव में बागानों को क्षति पहुंचा रहे है और मोटे तौर पे “पारंपरिक खेतीहर जीवन” को मुश्किल बना दिया है | इसमें किसी का दोष नहीं है, और दोनों ही पक्षों को नुकसान भी हो रहा है | इसलिए इस परस्पर संघर्ष को बहुत समय तक ह्यूमन वाइल्डलाइफ कॉन्फ्लिक्ट कहा गया |  इस संघर्ष से ये न समझें कि घृणा या मशक्कत का भाव है या कोई नकारात्मक भाव है , परन्तु यह एक जिया हुआ संघर्ष है जो समय के साथ उभरा है।  इस संघर्ष को पहाड़ी समुदाय अपने अपने तरीके से समझते हैं, व्यक्त करते हैं, और इसके प्रति बर्ताव करते हैं  | यह एक वास्तविकता है जिसे समझना अपने आप में समाज को समझने, उस जगह की इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) को समझने, और वहां की परंपराओं और रिवाजों को समझने के बराबर है |

[5] इन सभी पहलुओं का नाता संरक्षण से संबंधित विज्ञान (कंजर्वेशन साइंसेज ) से भी है |  उपनिवेशवाद की धारणा की प्रबलता के चलते संरक्षण का अर्थ जो  प्रचलित हुआ वो है “खतरे में पड़ी प्रकृति का इंसानों से संरक्षण |” आज संरक्षण की यह औपनिवेशिक समझ काफी हद तक बदली है , और हमारा आदाब और सरोकार उस बदली हुई समझ से है | इसका मतलब इन सब प्राकृतिक जगहों को, और वहां जो फलती फूलती सामाजिक परम्पराएं और प्रकृति आधारित रीती – रिवाज हैं , उनको बढ़ावा देने और उनके संरक्षण से भी है | इसका मतलब यह नहीं कि इंसान को नुकसान पहुंचे | मानव को प्रकृति का ही एक अंग स्वीकारते हुए उसके रोजगार और उसके समाज को बचाना | इसलिए मानव से अधिक, मानव से हटकर, इंसानी अस्तित्व से परे एक जीवंत संसार जैसे वाक्यों से उस एक समग्र वास्तविकता और भाव को बताया गया है जहां इंसान और प्रकृति दो ध्रुव न होके आपसी सामंजस्य की मिसाल हैं।

[6] एथनोग्राफी या फील्डवर्क करते वक्त आप “रिश्ते” बनाते है, या “संबंधों में बंधते” हैं  | “रिलेटेडनेस” का सिद्धांत, जैसा कि राधिका गोविंदराजन की किताब एनिमल इंटिमेसीज में बताया गया है, इसी भाव को आगे ले जाता है और कहता है कि ये रिलेटेडनेस प्रकृति, इंसानी समाज, और भूदृश्य सभी के साथ स्थापित होती है | “अपना स्थान बनाना , रिश्ते बनाना” जैसे वाक्य उसी की ओर एक इशारा है | और फिर हमारा रिश्ता शोधकर्ता का भी था, और उससे इतर एक मनुष्य का भी, और दोनों के अलग मायने थे | हम जिस समुदाय में थे, वहां के मेहमान तो थे ही , और इतना समय बीतने के उपरांत वहां के लोगों से परिवार जैसे ही रिश्ते भी हो चले थे क्योंकि हम एक शोध समूह के रूप में, या निजी तौर पे , शुभ अवसरों और सामाजिक कार्यक्रमों में पूरी तरह से भागीदारी देते |

[7] सामाजिक और पारिस्थितिकी वाक्य आपको पढ़ने मिलेगा, क्योंकि हिमालय जैसे सीमान्त  क्षेत्रों में  समाज और उसके सभी और फैली प्रकृति एक दूसरे से गुंथे है  |

[8] फील्ड-वर्क में जाने का मुख्य कारण है अवलोकन (या ऑब्जर्व) करना | एंथ्रोपोलॉजी में आप अवलोकन के माध्यम से ही वास्तविकता को जानते हैं | कहीं कहीं आप पढ़ेंगे इसी क्रम में फील्डवर्क प्रैक्टिसेज का अर्थ हुआ फील्डवर्क के दौरान डाटा इकट्ठा (या डाटा कलेक्शन ) करते हुए या करने के लिए की जाने वाली गतिविधियां | जैसे आप पढ़ेंगे “भ्रमण करना, पीछा करते, गतिशीलता, शाम तक उनके साथ चलना,” ये सब वाक्य एक खास गतिविधि को दर्शाते है | इसे अंग्रेजी में “फॉलो करना” कहते है | लंगूरों का दल हर सुबह “चलना शुरु करता और शाम को रुकता” | हम भी उनसे एक दूरी बनाकर उनके पीछे पीछे चलते, नदियों और मैदानों और ढलानों और खेतों के इर्द गिर्द से हम लंगूरों का दिन भर अध्ययन करते | इसे ही फॉलो करना कहा गया है |

[9] फ्रिक्शन से भी संघर्ष जैसा ही मतलब है, पर इसका भी कोई नकारात्मक भाव नहीं है | यह विचार भी एक ऐसी वास्तविकता  को दर्शाता है जहां सब कुछ स्मूथ और हमवार नहीं है, पर कहीं कहीं थोड़ी रगड़, कुछ तो असंतुलन है क्योंकि सब कुछ अपने आप में अलग है और एक-समान नहीं है | इस सिद्धांत को ऐना त्सिंग के शोध से अपनाया है |

[10] फील्डवर्क करके (जिसे  7 नंबर के फुटनोट में समझाया गया है ) हम डाटा का संकलन या डाटा को एकत्रित (डाटा कलेक्शन) करते | कैसे ? पेन और कॉपी लेकर पहले से बनाए कुछ मापदंडों के आधार पे हम लंगूरों के साथ चलते चलते उनका दैनिक जीवन कॉपी में दर्ज करते | ये समझने के लिए की वह अपनी पारिस्थितिकी में कैसा जीवन जीते है , नेचुरल क्या है ये जानने के लिए | जो ऐसे में आप दर्ज करते है उसे डाटा कहा जाता है और ये बहुत प्रकार का हो सकता है | रिवायतन तौर पे एथनोग्राफी में फील्डवर्क के दौरान जो डाटा इकट्ठा होता है उसमें अवलोकन से संबंधित नोट्स, साक्षात्कार (इंटरव्यू) से मिली जानकारी, तस्वीरें, सरकारी और गैर सरकारी काग़ज़ादों का विष्लेषण, सर्वे के परिणाम, समुदाय की गतिविधियों और कार्यकर्मों की रिपोर्ट या उन पर टिप्पणी, और अन्य बहुत प्रकार के स्त्रोत से डाटा आ सकता है | यह सारा डाटा एकत्रित मंडल घाटी में रहकर हुआ और वहाँ के समुदाय के साथ हमारे अनेकों रिश्ते बने |

[11] यह समझना जरूरी है कि फील्डवर्क से एकत्रित हुए डाटा में “ऑब्जेक्टिविटी”, तटस्थता, या निरपेक्षता रखना मुश्किल है, और इस लेख के माध्यम से यह साफ साफ दर्शाया गया है


इस पोस्ट को चयनित और संयोजित सहयोगी संपादक श्रेयाशा पौडेल द्वारा किया गया है।

सन्दर्भ सूचि 

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