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विरासत, स्मृति और इंफ्रास्ट्रक्चर

President Obama, congressman John Lewis, former President George W. Bush, and Civil Rights Movement veterans and other commemoration attendees marching across the Edmund Pettus Bridge in March, 2015

The Obamas and the Bushes continue across the bridge.

अमरीका में कुछ जगह और कुछ इमारतें हैं, जहा इस देश की तक़दीर तय हुई है।  कुछ जगह और स्मारक हैं – कॉनकॉर्ड और लेक्सिंग्टन, एप्पोमाटोक्स, गॅटीस्बर्ग। । दूसरी ओर वो सारी जगहें है जो साहस को दर्शाती हैं-  जैसे स्वतंत्रता दिवस हॉल, सेनेका का झरना, किटी हॉक और केप केनेवरल l 40 साल पूर्व एक दोपहर हमारे उपद्रवी इतिहास के कई अंश – दास प्रथा, गृहयुद्ध, पृथक्करण, जिम क्रोवे के ज़ुल्म, बिर्मिंघम में तीन मासूम लड़कियों की मौत, और के बैप्टिस्ट उपदेशक का सपना, सब एकत्रित हुए l प्रेजिडेंट बराक ओबामा, मार्च 2015.  

1965 के ‘March to Montgomery’  की 40वीं  सालगिरह पर राष्ट्रपति ओबामा ने एडमंड पुल पर खड़े होकर ‘खुनी रविवार’ (Bloody Sunday ) के ऐतिहासिक सदमे के सम्मान में यह भासण दिया। ईस  ऐतिहासिक घटना का भयावह  का प्रतीक बन गया है – एडमंड पेटिस पुल। राष्ट्रपति ओबामा की जीत से इस दाग का सफाया होता प्रतीत हो रहा है – एक नया अमेरिका उभरता हुआ नजर आता है , जिसने अपने शोसण  के निशाने को अपना राष्ट्रपति चुना है l ओबामा ने उसके बाद ‘मार्च टू  फ्रीडम’ (March to Freedom) की  याद में नागरिकअधिकार कार्यकर्ताओं, Alabama के नागरिक और पूर्व अमेरिकी नेताओं के जुलूस को संचालित किया l ये सारी  गतिविधियाँ वार्षिक ‘jubilee’ समारोह के अंतर्गत संपन्न हुईं l इस घटना के एक महीने पश्चात ही एक निहत्थे काले आदमी – Freddie Gray की संदेहजनक परिस्थितियों में पुलिस हिरासत में मौत हो गई l इस मौत ने ‘Black Lives Matter’ के इर्द-गिर्द बहस और समर्थन को फिर उभारा l इस आंदोलन ने ‘March to Freedom’ की रणनीति और पुलिस की सीधी आलोचना को फिर अपनाया l ग्रे कि मौत ने यह साबित कर दिया कि ‘March to Freedom’ आंदोलन कि परियोजना अभी जारी है, और एडमंड पेटिस पुल का इतिहास आज भी गूँज रहा है (Monteith 2013) l जब उस जातीय हिंसा के बाद स्वर्गीय सेनेटर जॉन लेविस (John Lewis ) का देहांत 2020 में हुआ , तो उनके कफ़न को उसी पुल के पार एक जुलूस में प्रस्तुत किय गया l यह सम्मान उनके जातीय शोषण के खिलाफ दशकों लम्बें संघर्ष के लिए उन्हें मिला थाl 

वर्त्तमान में एडमंड पेटिस पुल भौतिक और सिद्धांत के संगम पर स्थित हैl भौतिक रूप से  यह पुल पैदल यात्रियों और गाड़ियों के लिए Selma से Montgomery जाने का जरिया हैl सैद्धांतिक तौर पर यह पुल इंफ्रास्ट्रक्चर की विरासत और इतिहास के सिध्दांतो को मिलाता है। वार्षिक Jubilee सम्मेल्लन और निकट के संग्रहालय ने पुल के ‘दर्दनाक इतिहास’ को विरासत में तब्दील कर दिया l दुनियाभर में राजनीतिक आंदोलन, युद्ध, आत्महत्या और हिंसा ने रोज़मर्रे के आधाभूत ढांचे को काले इतिहास के स्मारक बना दिया है l ‘विरासत  स्मारकों’ को अक्सर रोज कि गतिविधियों से अलग ‘विरासत’ कि अपनी शैली में रखा जाता है पर एडमंड पेटिस पुल जैसे स्मारक इनमें से नहीं है l ये ऐतिहासिक जगहें नियमितीकरण का विरोध और दृश्यता की मांग करती हैं l 

क्या हिंसा, विरासत और हिंसा की विरासत के साहित्य ने इंफ्रास्ट्रक्चर को एक नए आयाम में खींचा है? इंफ्रास्ट्रक्चर की विद्वता दो विचारों को महत्व देती है – पहला आधाभूत ढांचे की दृश्यता तब सामने आती है जब कोई ख़लल उत्पन्न होती है  ( Star  1999, von Schnitzler 2016; Nemser 2017; Appel et al. 2018 )और दूसरा आधारभूत परियोजनायें सामान्यतया दूरगामी होती हैं, लोगों में सहूलियत बढाती हैं और साथ ही साथ भविष्य को केंद्रित करतीं हैं।   

एडमंड पेटिस पुल एक ऐसा नया उदाहरण है जो यह दर्शाता है कि इंफ्रास्ट्रक्चर जब साधारण तौर पर कार्यशील होता है तब भी हिंसा का समर्थन कर सकता है l कुछ मौकों पर इंफ्रास्ट्रक्चर की  कार्यशीलता ही ‘विरासत’ और ‘इतिहास’ को जागृत रखता  हैं और उनका स्मारक बन जाता है। ऐसी सोच विरासत और इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रति नई सोच को आमंत्रित करती है।

जुलूस 1965 

07  मार्च 1965  को  John Lewis समेत ६००० नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने एडमंड पेटिस पुल पार कर Selma से Montgomery में प्रवेश करके मताधिकारों  की मांग की। Alabama में  लाखों काले मतदाताओं को चुनाव से वंचित कर दिया गया था और उसी वर्ष के फरवरी महीने में एक काले निहत्थे आदमी –  Jimmie Lee Jackson , की मताधिकारों  के लिए हो रहे आंदोलन  के दौरान पुलिस द्वारा ही हत्या कर  दी गयी l Student Non-Violent Coordinating Committee (SNCC) और  Southern Christian Leadership Conference (SCLC) की ओर से प्रतिक्रिया में  07  मार्च, को एडमंड पेटिस पुल पर जुलूस  आयोजित किया।

Alabama के राजयपाल George Wallace ने दूरदर्शन पर भाषण में इस जुलूस पर प्रतिबंध लगाया, और प्रदर्शनकारियों  को धमकी दी की स्टेट ट्रूपर (स्टेट सैनिक बल), को  उन्हें Selma वापस जाने पर मजबूर करने के आदेश दिए जायेंगे।  इन धमकियों के बावजूद प्रदर्शनकारी अटल रहे। प्रदर्शनार्थी जब भजन गाते हुए Montgomery में प्रवेश कर रहे थे उसी वक़्त  Wallace के आदेश पर ट्रूपरों ने उन पर लाठी चार्ज करके आंसू गैस से प्रहार किया।  इस मुठभेड़ को ‘Bloody Sunday’ का नाम दिया गया, और उस शाम को दूरदर्शन पर उस घटना के  चित्र प्रसारित किए गए। इस घटना ने देश के काले नागरिकों  को क्रोधित किया और दो नए जुलूस आयोजित किये गए। मार्च 09, को पहले जुलूस का नेतृत्व SCLC और Martin Luther King ने किया l  मार्च 21 के दूसरे जुलूस में और भी लोग शामिल हुए। इन तीन जुलूसों ने अमरीका में काले लोगों के नागरिक अधिकारों की मांग के आंदोलन का इतिहास बदल दिया। 

SNCC ने सही अनुमान लगाया की 07 मार्च, के जुलूस में कैमरे मौजूद होंगे  इसलिए उन्होंने एडमंड पेटिस पुल का चयन किया।  पुल अमरीका के काले नागरिकों के संघर्ष का प्रभावशाली प्रतीक था – आंदोलन की  जड़ अमेरिका के काले नागरिकों के मतदान के हकों की लड़ाई थी, और ख़ास तौर से उनके कानूनी हकों और हकीकत के बीच की खायी को पार करना था (Monteith 2013:298)। इस इच्छा का प्रतीक  एडमंड पेटिस पुल बना और लोगो के हृदय में इस तरह से बसा जिसकी कल्पना उसके निर्माताओं ने नहीं की होगी (Monteith 2013 : 298 )।    

एडमंड पेटिस पुल कार्यशील रहते हुए, Selma को Montgomery से जोड़ता रहा, पर ऐसा करते हुए हिंसा और पुलिस और प्रदर्शनार्थी के मुठभेड़ का मंच बन गया। एक घातक मंच जिसकी छवि आज भी अमरीकी  इतिहास में मौजूद है और ऐतिहासिक अन्याय को वर्तमान में खींचकर अमरीका  के सामने बार-बार प्रकट करके  अमरीका को उनसे निपटने पर मजबूर करता है और  साथ ही साथ वर्तमान के राजनैतिक अन्याय जैसे racial capitalism, पृथक्करण और मताधिकार आंदोलन को सन्दर्भ भी देता है।

एडमंड पेटिस पुल सिर्फ एक पुल नहीं  रहा, वह अब एक स्मारक बन गया है, जो आज भी प्रदर्शन और विरोध का समर्थन करता है। ‘Bloody Sunday,’ एक मुठभेड़ से बढ़कर हरेक नागरिकों के हकों के आंदोलन का रूपक बन गया है। वह आज एक तीर्थ बन चुका है। पर्यटक पुल देखने आते हैं, Jubilee समारोह में शामिल होते हैं, साथ लगे संग्रहालय भी जाते है, और जो लोग खुद मौजूद नहीं हो पाते उनके लिए अनगिनत चित्र, फ़िल्में, और किताबें हैं,  जिनसे पुल का इतिहास प्रसारित होता है। ऐसी गतिविधियों के कारण एडमंड पेटिस पुल तीर्थ बन कर, रोज़मर्रे के सिर्फ एक पुल से बढ़कर, ऐतिहासिक और पवित्र स्थल  बन गया है।  उदारण के तौर पर कोरियोग्राफर Ralph Lemon ने पुल पर नृत्य के माध्यम से एडमंड पेटिस पुल का ‘सिर्फ पुल’ होने का यानी सामान्य इंफ्रास्ट्रक्चर होने का  विरोध किया (Birns 2005 :11)। ऐसा करने से रोज़मर्रे और अतीत की हिंसा की कड़ी बाँध जाती है (Birns 2005 :11)। Lemon के अनुसार पुल का सामान्यता घातक साबित हो सकता था। तीर्थयात्रियों का कर्त्तव्य उसके इतिहास को जीवित रखना होना चाहिए, जिसका जरिए विरासत को उभारने वाले स्मरणोत्सव बना  सकते हैं।  जहाँ स्मरणोत्सव इंफ्रास्ट्रक्चर में छुपे ऐतिहासिक प्रेत को प्रकट कर सकते हैं, विरासत परियोजनायें  कारगर इंफ्रास्ट्रक्चर को उनके हिंसापूर्ण इतिहास से जोड़ सकती है।  इन इतिहासों में अक्सर भविष्य का प्रतिबिम्ब नहीं मिलता।  

हिंसा की विरासत 

हिंसा को स्थान के विश्लेषण से जोड़ कर उसे एंथ्रोपोलॉजी के व्यापक विद्या से जोड़ा जा सकता है।  हिंसा सांस्कृतिक एंथ्रोपोलॉजी के लेखों में मौजूद होकर भी अक्सर स्थानीय विश्लेषण से परे रहती है  (Jansen and Löfving 20009) l पुरातात्विक लेखों में स्थान और पदार्थ दोनों पर ज़्यादा ध्यान दिया गया है (Walker 2001; González-Ruibal 2017,2006 ), जिससे प्रणालीगत हिंसा का भी पता चलता है, जैसे कि दक्षिण अफ्रीका (Weiss 2011)  और ऑस्ट्रेलिया (Casella 2012) में  नज़रबंदी का उल्लेख l  इन दोनों विश्लेषण में शारीरिक और प्रणालीगत हिंसा का अंतर साफ़ होता है। इस अंतर को नॉर्वे के समाजशास्त्री Johan Gaultung (1969) ने इस तरह बयाँ  किया है – प्रणालीगत हिंसा समाज के पूरे तबके को  शोषित करती है जबकि शारीरिक हिंसा अक्सर शरीर पर दिखती है। González-Ruibal and Moshenska (2015:3) कहते हैं की शारीरक और प्रणालीगत हिंसा में इतना खंडन नहीं है  क्योंकि ‘हम रणभूमि से बढ़कर अब कार्यस्थल, घर, और रोज़मर्रे की ज़िन्दगी में हिंसा को पहचानते हैं। इसका समाधान हिंसा की जांच करना है जो सिर्फ प्रणालीगत और शारीरिक हिंसा पर विचार नहीं करता है  – यह अतीत की हिंसा को वर्तमान के साथ जोड़ता है भी है और साथ ही साथ दुनिया पर अमिट छाप भी छोड़ता है l  (González-Ruibal and Moshenska  2015:5)

एडमंड पेटिस पुल  विभिन्न तरह के विश्लेषण का उदाहरण है।  हिंसा की  विरासत में दोनों, प्रणालीगत और शारीरिक हिंसा सम्मिलित है, जोकि विशेष अवसरों पर फूट कर प्रदर्शित होती  हैं  जैसाकि ट्रूपरों का प्रदर्शनार्थी पर प्रहार में दिखा था । इसके अलावा हिंसा की विरासत, हिंसा के प्रभाव को समझने में मदद करती  है जोकि लोगों की गतिशीलता और स्थान से उनके सम्बन्ध की सस्थितियों  को तय करता है। हिंसा चाहे शारीरिक हो या प्रणालीगत, हमेशा विरासत और स्मरण के कार्यक्रमों से जुड़ी रहती है और लोगो के व्यक्तिगत भूगोल को तय करती है।

इसके अतिरिक्त हिंसा की विरासत, हिंसा के लिए निर्मित इंफ्रास्ट्रक्चर और वो  इंफ्रास्ट्रक्चर जो हिंसा का मंच  बनता है, के बीच में अंतर करने का अवसर भी देती है। ऑस्च्वित्ज़-ब्रिकेनौ के गैस कक्षों का निर्माण हिंसा के लिए निर्मित इंफ्रास्ट्रक्चर का  उदाहरण है। इंफ्रास्ट्रक्चर प्रणालीगत हिंसा को समर्थन दे सकता है जैसाकि जेल का निर्माण इंजीनियर, ठेकेदार और प्रबंधको को कैद करने के लिए होता है। हालांकि उस इंफ्रास्ट्रक्चर का प्रयोग दूसरे प्रयोजनों के लिए भीहो सकता है, लेकिन उसका आकार अक्सर उसके उद्देश्य के आधीन होता है।  एडमंड पेटिस पुल इन संकल्पो के विपरीत्, अपने आम उद्देश्य यानी Selma और Montgomery को जोड़ते हुए, हिंसा का मंच बना हालांकि उसके निर्माण में ऐसे विचार शामिल नहीं थे। 

यह पुल दूसरे विरासत स्थलों, जहाँ पदार्थ स्थान के विरासत को स्थापित करने में सहयोगी होता है।  सितम्बर 11 ,  का स्मारक ट्विन टावर्स के नींव के पदचिन्ह की  खुदाई को दर्शाकर उस दिन के भय को ताज़ा रखता है।  एडमंड पेटिस पुल के सन्दर्भ में, हिंसा को ताज़ा रखने के लिए स्मारक गतिविधियाँ ज़रूरी हैं।  बोस्निआ में एक समरूपी  सन्दर्भ में  Björkdahl और Selimovic ने कहा किऐसे पुल जिन्हे हिंसा का मंच बनाया गया, “रोज़मर्रे की ज़िन्दगी में शामिल रहते हैं, लेकिन आम मौकों पर कुछ व्यक्तिपरक प्रतिनिधि उन्हें राजनीति में शामिल करते हैं।”  फिल्म, चित्र, सोशल मीडिया, Jubilee जुलूस, और अंत्येष्टि जैसे स्मारक गतिविधियों से एडमंड पेटिस पुल का राजनैतिक पुनःनिर्माण जारी रहता है।  जारी पुनःनिर्माण से पुल सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर का नमूना नहीं रहता।   

जब इंफ्रास्ट्रक्चर एकत्रित होता है   

 एडमंड पेटिस पुल के इर्द-गिर्द स्मारक गतिविधियों का उत्पन्न होना समझ में आता है, लेकिन अनिवार्य नहीं था। हिंसा का मंच बनने वाला हर इंफ्रास्ट्रक्चर विरासत स्मारक नहीं बनता।  इस परिवर्तन को अंजाम देने में मीडिया  का मतत्वपूर्ण योगदान रहा है।  मीडिया ने इस घातक स्मृति को आज के दर्शको से जोड़ा है।  इतिहास में हुए हिंसा के फुटेज को वर्तमान के सोशल मीडिया पोस्ट में प्रदर्शित किया जाता है, जिससे पुल के इर्द-गिर्द डिजिटल क्लाउड कायम रहता है, इससे  एडमंड पेटिस पुल विरासत में तब्दील होने के के लिए मौजूद रहता है।  हिंसा को अनोखा और दर्शनीय बनाकर एक तुच्छ पुल को विरासत स्मारक बना दिया जाता है, जहाँ  अमेरिका के भयानक इतिहास को याद रखा जाता है। मीडिया खुद में इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिसके जरिए रोज़मर्रे के इंफ्रास्ट्रक्चर को महत्ता दी जा सकती है।  

इंफ्रास्ट्रक्चर  एक ऐसा नमूना है जो जनता, स्थलों, और पदार्थों  को एकत्रित करता है (Simone 2006), और इंफ्रास्ट्रक्चर खुद में एक तंत्र-जाल  का निर्माण करता है।  इस तंत्र -जाल में इंफ्रास्ट्रक्चर के रोज़मर्रे की  कार्यशीलता को उभारा जाता है और  इसकी कार्यशीलता को पुल के हिंसा की विरासत से भी जोड़ता है, जिसे सोशल मीडिया पर जारी रखा गया है। इस विश्लेषण का यह परिणाम निकलता है कि इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ नाकामी के हालातों  में दर्शनीय नहीं बनता, बल्कि कार्यशील रहते हुए, हिंसा की विरासत को कायम रखने से भी दर्शनीय बनाया जा सकता है। 

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